भगवान सिंह रावत ‘अकेला’ शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया मुंबई में शामिल हो गए जहाँ उन्होंने जीवन पर्यन्त काम किया।. भगवान सिंह ‘अकेला’ मुंबई में कई दशकों तक गढ़वाली सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रसिद्ध हस्ताक्षरों में से एक थे। भगवान सिंह रावत ‘अकेला’ ने गीतों की रचना की और उन्हें मुंबई के गढ़वाली सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गाया करते थे और एक समय में मुंबई में उनके हज़ारों प्रशंसक थे। उनके गीत हमेशा मधुर होते हैं और श्रोताओं को आज़ादी से पहले ग्रामीण गढ़वाली समाज के दर्द, खुशी, संघर्ष और आनंद की याद दिलाते हैं। गीता राम भट्ट जैसे उनके कई प्रशंसक भगवान सिंह की गीतों के शब्दों और उन्हें गाने के लहज़े से दर्शकों को आकर्षित करने की उनकी क्षमता की प्रशंसा करते भगवान सिंह रावत की कविताएँ चमोली गढ़वाल की गहरी छाप और सुगंध लिए हुए अद्वितीय हैं। पाठक भगवान सिंह की कविताओं में विरह की पीड़ा, गढ़वाल के वास्तविक भौगोलिक दृश्य, प्रेम और करुणा को महसूस कर सकते हैं। भगवान सिंह ने अपनी कविताओं में चमोली गढ़वाल के अलंकार, रूपक, प्रतीक, बिंब, लोकप्रिय कहावतें और कहावतों का इस्तेमाल किया है।
उनकी कविता गंगा माई का एक उदाहरण --
शिवजी की जटा छोड़ी बगड़ी तू ऐ
हिमवंती गुणवंती मेरी गंगा माई
औंदी मेरी गंगा वाख बीतेन जाख देव-स्थान
जाख बारामासा कौनला फूल फूलदान
भगवान सिंह रावत ‘अकेला’ उत्तराखंड के परिदृश्य और लोगों की प्रशंसा करने वाली अपनी कविता के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जैसे कि निम्नलिखित कविता -
भूमि को बैकुंठ –उत्तराखुंट !
भारत कु सिर- ताज भैजि, सुंदर उत्तराखंड
वेदूं की वेदान्त भूमि , यु अपणु उत्तराखंड
कुबेर कु नंदन -बण केदारकु काँठु
बसुधारा कु ठंडो पाणी कैलास कु बाटो
रंग -रंगीलु हर्युं -भर्युं , भूमि कु बैकुंठ
सरजू पाणी , काळो डांडी न्यारुं की भूमि
बागेश्वर , नैनीताल , नंदा की त्रिशुली रंग -रंगीलु हर्युं -भर्युं , भूमि कु बैकुंठ
पिंडारी बण अलकापुरी , ताल भीमताल
रौंतेलु कूर्माचल अपणु गीतुं कु गढ़वाळ
रंग -रंगीलु हर्युं -भर्युं , भूमि कु बैकुंठ
गंगा , गौमुख केशर क्यारी फूलूं का बगवान
झर झर झरणा , गुण गुण भौंरा , कस्तूरी मृग छन रंग -रंगीलु हर्युं -भर्युं , भूमि कु बैकुंठ
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( साभार --शैलवाणी ,
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