आलोचकों ने राम प्रसाद गैरोला ‘विनयी’ की कविता ‘सद्दियाल’ (1967 में प्रकाशित) की बहुत प्रशंसा की है, जो युद्ध में शहीद हुए सैनिक की विधवा के जीवन के बारे में है। कविता करुण रस का एक सच्चा उदाहरण है और साथ ही, कवि सत्तर के दशक से पहले ग्रामीण गढ़वाल की अन्य वास्तविकताओं को भी दर्शाता है। पति जब जीवित होता है और सेना में सेवा में व्यस्त रहता है, तो पत्नी वियोग की पीड़ा से गुजरती है। पत्नी की बेचैनी, साथी से मिलने की शारीरिक जरूरत, पति के पत्र का इंतजार और किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने की जद्दोजहद, जो दूसरों को बताए बिना उसके पति को पत्र लिख सके, इन सभी को राम प्रसाद पांडे ने बखूबी दर्शाया है। महिलाओं का संघर्ष सिर्फ विधवा के पति की अचानक मृत्यु के कारण उससे अलग होने की पीड़ा तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे पुरुषों के बजाय महिलाओं पर थोपे गए अन्य सामाजिक बोझों को भी झेलना पड़ता है। पति को खोने के बाद विधवा को कई असहजता से गुजरना पड़ता है। राम प्रसाद अपनी कविताओं में चमोली और पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्र की क्षेत्रीय बोलियों का प्रयोग करते हैं। राम प्रसाद पांडे की यही खासियत उन्हें अन्य औसत गढ़वाली कवियों से अलग करती है। कॉपीराइट @ भीष्म कुकरेती, मुंबई, भारत, 2009भगवान सिंह रावत ‘अकेला’ शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया मुंबई में शामिल हो गए जहाँ उन्होंने जीवन पर्यन्त काम किया।. भगवान सिंह ‘अकेला’ मुंबई में कई दशकों तक गढ़वाली सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रसिद्ध हस्ताक्षरों में से एक थे। नारी
चिठ्ठी बाँची सब सजन भौत यो सोचदी छै
सारी पीड़ा हृदय तल की कंठ मू रोकदी छै
वीरात्मा की कुशल गृहणी यौवनाएंगी सुनीता
प्यारी श्यामा करूं दिल की स्वच्छ मुग्धा विनीता
माठू माठू कारक चलदी प्रेमणी श्रेष्ठ नारी
उन्मुक्ता औ मृदुल तनया रूपणी प्राण प्यारी
सौरा जी पुछण पर मैं यो ब्वदो क्या बथौंलू
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स्वामी जी हंसदि छवि की छाप जी मा उतारी
लैगी धंधा करण घर को भातृ -भू की ब्वारी
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