Bhishma Kukreti
सुदामा प्रसाद ‘प्रेमी’: एक गढ़वाली कवि, कहानीकार और आलोचक
आधुनिक गढ़वाली (एशियाई) कविता का आलोचनात्मक और कालानुक्रमिक इतिहास
साहित्य इतिहासकार: भीष्म कुकरेती
सुदामा प्रसाद प्रेमी: एक गढ़वाली कवि, कथाकार और आलोचकआधुनिक गढ़वाली (एशियाई) कविता का गंभीर और इतिहाससाहित्य इतिहासकार : भीष्म कुकरेती-साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता सुदामा प्रसाद ने कभी 'डबराल' को अपनी जाति नहीं समझा। सुदामा प्रसाद प्रेमी का जन्म 22/12/1931 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के कालजीखाल ब्लॉक फालदा गांव, पटवालस्यूं में हुआ था। सुदामा प्रसाद दिनांक 12/6/2014 को गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में इस संसार से विदा ले गए। उनके पूर्वज डबरालस्युन से पटवलस्युन में ज्योतिष और कर्मकांडी ब्राह्मण के रूप में चले गए।इनके पिता का नाम पंडित हरि राम डबराल था पंडित हरिराम चाहते थे कि सुदामा प्रसाद ज्योतिष और कर्मकंडी ब्राह्मण के रूप में अपनी पारिवारिक परंपरा को निभाएं। पंडित हरिराम डबराल ने घर पर सुदामा प्रसाद ज्योतिष एवं अन्य कर्मकाण्ड संस्कार पढ़ाया। हालांकि सुदामा प्रसाद को नौकरी की तलाश में अपने पूर्वज गांव फालदा को दिल्ली छोड़ना पड़ा। सुदामा प्रसाद प्रेमी एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करते थे और बाद में उन्होंने अपना प्रिंटिंग प्रेस भी स्थापित किया। वैसे सुदामा प्रसाद ने अपने व्यवसाय पर कम ध्यान दिया और साहित्य बनाने पर ध्यान दिया। छपाई के काम से रिटायर होने के बाद सुदामा प्रसाद अपने पैतृक गांव फलदा लौटे और 2011 तक वहां रहे लेकिन तबीयत खराब होने के कारण फिर गाजियाबाद आना पड़ा।दिल्ली को गढ़वाली भाषा साहित्य की राजधानी बनाने में सुदामा प्रसाद प्रेमी का योगदान। वह दिल्ली में साहित्य रचनाकारों की बैठकों के आयोजन में भी शामिल थे। एक बार हर गढ़वाली कवि सम्मेलन में जरूर गढ़वाली कवि थे। सुदामा प्रसाद कन्हैया लाल डंदरियाल के समकालीन थे, जे. बाउल्या, प्रेम लाल भट्ट, अबोध बहुगुणा और जगदीश किरण।सुदामा प्रसाद प्रेमी ने सौ से अधिक गढ़वाली काव्य संग्रह प्रकाशित किया और उनके काव्य संग्रह द्वी अनसू और अग्याल विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। गढ़वाली गायत्री की ब्वे और घनटोल में प्रेमी ने दो कहानी संग्रह प्रकाशित किए। उन्होंने गढ़वाली भाषा में नाटा एन पाठ में एक उपन्यास भी प्रकाशित किया। सुदामा प्रसाद ने गढ़वाल में एक काव्य नाटक 'बटवे' के रूप में भी प्रकाशित किया। गढ़वाली मुहावरे की किताब 'गढ़वाली अखना पखाना' के उनके संग्रह की सराहना की गई।मशहूर गढ़वाली साहित्य समीक्षक अबोध बंधु बहुगुणा लिखते हैं कि उनके छंद आम आदमी के संघर्ष को दर्शाती हैं। उनका काव्यात्मक निर्माण आसानी से स्थिर शब्दों के साथ सरल था। उनकी कविता में भी दयनीय हालात हैं।सुदामा प्रसाद प्रेमी ने भी कहानियों को प्रकाशित किया।सुदामा प्रसाद प्रेमी और गढ़वाली साहित्य में उनके कविता, कहानी, आलोचनात्मक गद्य में योगदान को गढ़वालियों को हमेशा याद रखेगा।ब्यटा ! कथगा निर्दै हुयाँ तुम !--ब्यटा दयाल , कृपालजब से तुम परदेश गयां,तुमन इख को बात नी ऑरेंजकथगा निर्दै हुयाँ तुम !जैन ब्वेका तुमन ने जगत का पालन किया,जैं ब्वेना तुम नांग भूख सैकीअपणी छाती पर चिपकैकी रखी छा ,जैं ब्वेना ज्यू मारी की ,लाड प्यार से पाळीपोशी कीअपणो मन बुथ्याई छयो -कि म्यरा गुरबर -गरबरबच्यां राला , गोरु चरैकी भी -गुजर बसर कारला।पर तुम गोरु चरौण्या न रैकी -मनखी चरौण्या ह्वैग्याँयाँ की मी तैं भारी ख़ुशी छै:अपणी कोख मिन धन्य समझी छैःपर ब्यटा आज मेरा होणा छन कुहालटक्क लगैक सूण्ल्याब्यटा दयाल -कृपाल-( साभार --शैलवाणी )
0 Comments