पेश है श्री रतन सिंह किरमोलिया जी की कविता
"लौटि आओ म्यार गौं
यौ कुड़िक ढुंग, माट्म गार, निरओ उ दिन
उदिन उणू है पैली, लोटि आओ म्यार गौं।
बुसिण लारै मन्ख्योव सारी, ह्वैलाण लारै स्वैंण पनपी।
माठुमाट के सिराणी संस्कार, रीति-रिवाज हमार त्यार-बार,
क्यार बाई तलिमलि सारैं-सार, माठुमाट के पुरखों की मिटनै अन्वार।
गोठ पान धौ धिनाई नाज पाणि, सुकनै ऊनौ छ्याव, चुपटान, नौवोक पाणी,
हमरि पितरुं कि आपणि हौत छी जो, आ दुरांकि हौत करि यौ हरै सरग चाणि।
लेखी-जोखी खोई म्वाव, इकद्रि ह्ण छी ठुलि कुडिक,
जैस दारपदार बणी हं छी, घाव दयार और तुणीक।
मणि-मणि कै मेटिणै नौ निसाणि,
फुफाणौ अर्याटे-कर्याटे सिसौंण क भूड़,
मौनाक जावांक मौ धौ देखिण ह गो,
मौनाक जावां अडारौंल लगै हाली पूड़।
के म्यार पुरखोंक गौंकियस्से छी पछ याण,
दूद जुन्यावैकि पुज लागछी थान बार,
पितरौंक बताए बाट जांछी सब्बै,
किलै भुलि गेई आपण पर्याय अच्यानचार।
भौव हैं गौंक इतिहास पढ़्न है पैल्ली, गौंक बाट मेटिण हैं पैल्ली,
पुरखोंक पुस्तनाम द्येखण हैं पैल्ली, उ खन्यार कुणौ मि आजी ज्यों नै छों।
यौ कुडि़क ढुंग, माट, गार, नि र ओ उ दिन,
उ दिन ऊण हैं पैल्ली, लौटि आओ म्यार गौं,
लोटी आओ, म्यार गौं....................।
Presented by Late Pankaj Mahar
Copyright@ Bhishma Kukreti, Mumbai India,
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