केशव नंद ध्यानी: बाजूबंद शैली और आकर्षक उपमाओं के एशियाई, गढ़वाली कवि
आधुनिक गढ़वाली (एशियाई) कविता का आलोचनात्मक और कालानुक्रमिक इतिहास -
साहित्य इतिहासकार: भीष्म कुकरेती
केशव नंद ध्यानी ने कुछ गढ़वाली कविताएँ रचीं। उनकी कविताएँ पारंपरिक शैली पर आधारित हैं। उन्होंने 'बाजूबंद काव्य शैली' पर कविताएँ रचीं। पाठकों ने उनकी उपमाओं के प्रयोग का आनंद लिया। केशव नंद ध्यानी का जन्म 1926 में हुआ था। उनकी कविताएँ इतनी मधुर थीं कि आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) से उनकी कविताओं की अच्छी माँग थी।
दीवा जसी जोत
(बाजूबंद शैली में रची गयी आधुनिक कविता )
-रचना --केशवा नन्द ध्यानी (1926 )
-चंदी गड़ी बन्दी
कैकी सुआ ह्वेली /इनी लगुली सी लफ़ंदी
दीवा जसी जोत
चदरी की खांप
कैकी सुआ ह्वेली / इनी सैल जसी लांप
दीवा जसी जोत
पाणी जसी पथळी/ रुआँ जसी हपळी
डाळी जसी सुड़सुड़ी /कंठ की सी बडुळी
बखर्यों तान्द,कैकी सुआ ह्वेली
इन राजुला सी बांद
दीवा जसी जोत
धुँआ जसी धुपेली /नौ गज की धमेली
राजुला सी राणी /केळा जसी हतेली
शंखा की टँकोर
कैकी सुआ ह्वेली /इनी टपरांदी चकोर
दीवा जसी जोत।
नौ सोर मुरली
गीतांग सी गौळी
बुरांस जनी फूल
फ्योंळि जनी रौंतेली।
लगुली लचीली
कै चाल चलदी सुआ
साज सी सजीली
दीवा जसी जोत।
( साभार --शैलवाणी )
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