कर्मफल इखि मिल्दन - गढ़वळि क सर्वाधिक कथा लिखण वळ - भीष्म कुकरेती By Bhishma Kukreti

 


कर्मफल इखि मिल्दन
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गढ़वळि क सर्वाधिक कथा लिखण वळ - भीष्म कुकरेती
s =आधी अ

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बयाणबे वर्षै हवलदनि सुबदा क उलटी हूणो अहसास रुकणा नि छा। वास्तव म उल्टी नि हूणी छे अपितु इन लगणु छौ बल उल्टी हूण इ वळ च। तीन दै पाणी बि पे पर क्वी प्रभाव नि पोड।
हवलदनिक नातिक ब्वारिन ब्वाल , " मीन कतना दै समजायी याल अब तुम्हारी आयु गाँव म उन्द -उब जाणै नी। पर तुम पर तो म्यार गांवक मैंदरू , गांवक मैन्दरु की पड़ी छे। "
कसद कसद हवलदनि न ब्वाल , " एक बुरांक जरा जवाण द्यावदि"
ब्वारिन हवलदनि तैं जवाण दे। हवलदनि न फांक मार अर पाणि पे। कुछ समय उपरान्त हवलदनि क उकाई शांत ह्वे गे।
हवलदनि बुलण लग गे , " मि तै लग आज मि मैन्दरु से पैल इ भेमाता म पौंछदु। "
ब्वारी , अब ?"
"हां अब इन लगणु उके बंद ह्वे गेन। क्या हुलरी उठिन उकै उपरान्त ! हे मेरी ब्वे। " हवलदनि उत्तर छौ।
हवलदनि न ब्वाल , : जाओ तुमन जख जाणै चल जावो , जरा जवाण अर द्वी काळी मरचु दाणी अर एक प्याज धर जावो। दुबर ऊंकै ह्वे त ... "
हवलदार जी प्रथम विश्व युद्ध म फ्रांस बॉर्डर पर शहीद ह्वे गे छा। तब हवलदनि अठों मैना चलणु छौ। एक ही पुत्र , एक ही नाती। हां प्रथम विश्व युद्ध बिटेन आज तक हवलदनि तै पेंशन मिलणी च तो धन से समस्या नि रै। शेष समस्या ससुरासौ गाँव म सहकारिता दूर करणी रौंदि छे।
आज सुबेर बि जब हवलदनि न मथि ख्वाळौ मैन्दरु क ऐड़ाट भुब्याट सूण तो कुबड़ी हवलदनि कुंखड्या -कुखड़ी लाठ टेकि , सुंस्कारी भरदी भरदी मैन्दरु ख्वाळ पौंछि गे। नातीs ब्वारी रुकद इ रै गे पर गाँव म दुःख सुख म दगुड़ निभाणो उत्तरदायित्व निबत हवलदनि मैन्दरु घर पौंची गे।
अर जु कुहाल हवलदनि न मैन्दरु देखिन अर बस अपर घर आंद आंद उलटी क अहसास , उकै शुरू ह्वे गे।
अब खटला म पोड़ी हवलदनि न दस दैं स्वाच पर लग नि मैन्दरु क यी हाल उलै ह्वे ह्वाल।
बिचारु मैन्दरु क हथ -खुट अर मुंड पर घाव हुयां छा। घाव हूंद त क्वी बात नि छे। बीस पचीस दिन क घावों पर कीड़ पड़ गे छा। हवलदनि न बि वो कीड़ बिलबिलांद देखिन तो वो कीड़ों क याद कोरी ही हवलदनि तै उकै आणि छे। उलटी तो नि पर अहसास कि उलटी अबि हूंद धौं। अर जब वैद्य क औषधि, जड़ी बूटी अर तंतर -मंतर से बि कुछ प्रभाव नि पोड़ तो कुटुंब क एक महारथी न गांवों म मिटटी तेल डाळ दे कि कीड़ मर जाल जन खुर्या क कीड़ मिटटी तेल से मर जांदन। अर जनि मिटटी तेल घावों म डळे गे कि मैन्दरु पर आग लग गे। स्यु जोर जोर से किराण लग गे। दुसर गाँव तक बि मैन्दरु किराट क ध्वनि पॉंच गे।
हवलदनि से बिंडी नि दिखे गे वो कीड़ वळ घाव अर मैन्दरु क किराण। हवलदनि वापस अपर घर ऐ गे उकांद उकांद ।
अब हवलदनि सुचणी कि क्या मैन्दरु अपर महा पाप क फल भुगणु होलु ?
द्वी मैना पैल तक यो मैन्दरु ठीक ठाक छौ बस एक मैना पैल फोड़ा शुरू ह्वेन अर कुछ दिन उपरान्त फोड़ा घाव बणिन अर फिर बड़ा बड़ा कीड़ घावों पर। दवा दारु से बि कुछ अंतर् नि आयी। इख एलक कि कीड़ घावों से भैर ऐक भ्यूं पड़ जांदा छा। सरा गाँव भगवान से प्रार्थना करणु छौ कि मैन्दरु तै उठै दे। इन नरक भुगण से बढ़िया तो मृत्यु ही ठीक च। किन्तु हवलदनि तै अब पूरो विश्वास ह्वे गे कि द्वी तीन मैना तो भ्वागल ही।
हवलदनि तै ओ दिन याद ऐ गे। जब मैन्दरु क बुबा जीन दया बस द्वी पाथ झंगोरा जन्ना कौं तै दे दे। क्रोध म ऐक मैन्दरु न अपर बुबा सरा गाँव वळों समिण जुते दे। मैन्दरु क ब्वे नि छे पर अपर नौन क जुत खाणो दुःख म मैन्दरु बूबा अलग ह्वे गे अर ये दुःख की आग म सुलगतो सुलगता एक वर्ष म ही भगवान जोग ह्वे गे।
तब हवलदनि व अन्यों तै नि पता छौ कि मैन्दरु ये महा पाप की दंड ये ही जनम म भुगतल। हवलदनि तै पूरो भरवस ह्वे गे कि मैन्दरु पर कीड़ पोड़िन तो बाब जुत्याणो महापाप को ही प्रतिफल च।

(सच्ची घटनाओं पर आधारित )
Copyright@ Bhishma Kukreti , 2014 अक्टूबर


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