क्या मेरी बड़ि दादिन गढ़वाळौ भविष्य नि बताई छौ ?-
(सच्ची घटनाओं तै जोडिक , अवचेतन मन कथा )
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मनोविज्ञान कथा - भीष्म कुकरेती
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ब्याळि रात ब्वालो या आज रात रात म एक सुपिन आयी अर मि झठ से बीज ग्यों। भग्यान बूड -बुड्यों क सुपिन म आण क्वी आश्चर्य की बात नी च। मेरि बड़ि ददि (बुबाजीक बोडी ) सुपिन म आयी तो आश्चर्य नि हूण चयणो छौ।
किंतु यु सुपिन क्वी साधारण सुपिन नि छौ। सुपिन वास्तव म '"नई साखी अपर पुरण साखी पर भगार लगौंदन कि हमर ब्वे बुबान हमकुण कुछ नि कार। या हमर ब्वे बाब भविष्य नि दिखदा छा " को उत्तर छौ।
मि बि भौत सा समय सुचद छौं कि हमर ददा जी , बड़ ददा जी इन करदा तो आज हमम यु हूंद। पिताजी सन साठम फलित ले लींदा तो मुंबई म हम स्वतः करोड़पति ह्वे जांदा। या हम सन साठ , देहरादून म भूमि ले लींदा तो आज अरबपति हूंदा। अर्थात अपर पुरखों पर भगार लगाणो विचार ही आंदा रेन कि तुमन कुछ नि कार। सैत च तुम बि अपर पुरखों पर इनि भगार लगांदा इ ह्वेला ? म्यार मनण च बल यु मनोविज्ञान कि मेरे पिताजी ने कुछ नहीं किया प्रत्येक म ही दर्शित हूंद ह्वाल। या बात जब अवचेतन मन म बैठ जावो तो आज न भोळ उत्तर हेतु सुपिन आला ही।
आज सुपिन म मि एक अनजान मनिखा दगड़ बैठ्युं छौ कि बड़ि ददि दिख्याइ। पैल ददि पराया मनिख देखि शर्मायी। मीन बताई कि दगड़्या च तो ददि सामन्य अवस्था म आयी। हमर मध्य क्या बात ह्वे यु याद नी किन्तु मीन जब पूछ ," ददि ! तू सदा ही भविष्य हेतु अड़ानि रौंद छे किन्तु तीन इन नि बताई कि एक दिन हमर गाँव खाली ह्वे जाल अर सरा गाँव भैर बस जालो? "
ददि कुज्याण कैं भौण म मुस्करायी जन बुल्यां व्यंग्य , चुनौती , उलाहना , लताड़ना , लांछन , या याद कौर क भौण म अर सराक से ददि अंतर्धान ह्वे गे सुपिन म. मि बर्र बिज ग्यों।
फिर से ग्यों किन्तु सुपिन याद इ नि राई अपितु ददि क विलखणी मुस्कराहट भौं भौं समय याद आणि च।
मेर समज म नि आयी यु सुपिन किलै आयी अर याद किलै च। ददि मुकरायी किलै च ? क्या उत्तर छौ वे मुस्कराहट म ? क्या याद करण ? मेरी क्या भूल च ?
धीरे धीरे मि सुचणु रौं कि अचाणचक म्यार मस्तिष्क म एक घटना दिखेण लग गए। गर्म्युं छुट्टि छे अर कक्षा सातक परीक्षा फल ऐ गे छौ अर मि तै गणित म पचास मंगन पचपन नंबर मील छा जो सिलोगी स्कुल इ ना हमर गाँव म बि चर्चा क विषय बण्युं छौ। बिठलरों म बि चर्चा ह्वे कि मीन कुछ तो विलखणी कार्य कौर।
हमर पड़ोसन ददि छे कुमणी ददि। वेदिन कुमणि ददि अर मेरी चची (पिताजी क चचेरा भाई क पत्नी ) हमर छज्जा म छा कि कुमणि ददि न ब्वाल , " हे भीषम ! पढ़न म तो तू हुस्यार छे तो नौकरी बि तेरी बड़ी ही हवेली , लात साब बण जैली तो देसुन्द ( गढ़वाल से भैर ) त्यार बड़ो कूड़ होलु जन सिलोगी म फारेस्ट गाड़ क च तो तू अपर ब्वै तै दगड़ म लिजै या नि लिजै पर अपर चची तै अवश्य दगड़म लिजै। त्यार बान इ सै या ब्वारी भितर इ झाड़ा तो कारली(वास्तव म महिलाओं मध्य फारेस्ट गार्ड क चौकी क भवन म भितर लैट्रिन की च्चर्चा हूंदी छे आश्चर्य म ) ।
मीन बि हां भौरी ," किलै ना चची चचा म्यार दगड़ी डाला। "
निपूती चची रूण मिसे गए अर बुलण लग गे , " मि तै लिजै न या लिजै पर म्यार आशीर्वाद च तू बड़ो ऑफिसर बौण अर तेरी बड़ो क्वाठा भितर देसुन्द हो। "
दस की परीक्षा उपरान्त मि देहरादून से घर आयुं छौ।
मेरी मां क फूफा जी भग्यान जयराम उनियाल जो हमर गांवक बहुगुणाओं क कुलपुरोहित बि छा हमर गाँव अयाँ तो बडा जी , माँ तै मिलणो हमर घर बि ऐन। वैदिन मि बि बडा जी , बुडा जी (उनियाल जी ) क मध्य छौ। बडा जीन बूडा जी से प म्यार विषय म पूछ कि भविष्य म क्या करण तो बूडा जीक उत्तर छौ , " ये तै गणित म एमएससी कराओ मि ग्रारंटी दींदो कि एक नौकरी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री याओएनजीसी म पक्की। अर बड़ी कोठी तक्खी। नि हॉल तो म्यार नाम जयराम नी। "
अब छ्वीं याद करदो तो याद आई कि बूडा जीक तीनि पुत्र एमएससी छा अर दुयुंक नौकरी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री व बड़क नौकरी ओएनजीसी म लगीं छे।
याद पर याद आंदि गेन -
बारवीं परिक्षा उपरान्त मि ममाकोट ग्यों। तो लगभग ममा जी , मामि जी नना जी नानियों न एकि भौण म आशीर्वाद दे बल , " भणजो , नाती ! खूब पढ़ लिख पास ह्वे अर देसुम नौकरी लग जा। तख बड़ो कूड़ बणै पर हाँ फलण जन ब्वे बाब नि बिसर जै. , पर बूबा त्यार ब्वे बाब तो भाग्यशाली छन त्यार बूबा जीन मुंबई म मकान लियोन च। "
बीएससी क अंतिम वर्ष म मि अपर स्कूल सिलोगी म ग्यों तो जै बि अध्यापक तो मील तो सब्युंन ब्वाल , "तीन तो अवश्य फस्ट क्लास म पास हूण अर भैर इ नौकरी लगण , तखो कोठी साठी। "
इनि एक दिन गांवक प्रधान ददा जी क डिंडळ म चल ग्यों। प्रधान ददा जी क इख मि कक्षा पांच से ही आंद छौ सत्यपथ अर कर्मभूमि पढ़णो। आज बि मि सत्यपथ अर कर्मभूमि पढ़णो गयो छौ। तख घनस्यान ददा जी , जोगी बाडा , बामण नंदा काका (गांवक जागरूक लोक ) बि छा सि हमर गांवक लोकुं गणत करणा छा जु भैर गेन , जौन तखि मकान लगाई अर अब गाँव कम हि आंदन।
नंदा काका क जोर छौ बल एक दिन गाँव खाली ह्वे जाल किलैकि सब भैर बस जाला। यदि सि घर नि आला तो हमर खेती , भूमि , बौण सब खत्म ही ह्वे जाल।
तूंगी काका न हामी भौर खत्म क्या हूण पिछ्ला दस वर्ष म हमन द्वी भद्वाड़ करण बंद ही कौर ऐन। एकक परिवार भैर गे तो वैक पुंगड़ बांज पड़ जाणु च तो बकै खेतों कु खेती कार्ल। अर यी भैर वळ गाँव बि कम इ आणा छन।
अंत म प्रधान ददा न ब्वाल , " गाँव भले इ खाली ह्वाल किन्तु हमर ग्विल्ल , नागराजा , नरसिंघ अवश्य ही यूं तैं गाँव भट्याल। अवश्य ही भैर वळ देव पूजा हेतु गाँव आला ही।
तब मेरी समज म नि आयी कि यि छ्वीं क्या लगणा छन। किन्तु आज सुपिनम ददि दगड़ वार्तालाप से सब समज म ऐ गे।
एमएससी करणो उपरान्त कुछ दिनों कुण घौर औं त मेरी ददि , ददि -ददा बोडी -बोडा , काका काकी , बौ -भेजी इख तलक कि हमर पारम्परिक ल्वारण बोडी न बि सलाह दे ," इख पण कखि बि नौकरी नि कोरी। भैर ही उचित रालो। "
इनि अब मै याद आयी कि लगभग सब्युंन भविष्य बाणी तो कार कि मेरी नौकरी मैदान होली अर तखि मकान लगों।
भौत समय तक सुचद सुचद सब रहस्य खुल्दा गेन कि सब ददि समेत सूचना दीणा छा कि तुम युवाओंब न भैर नौकरी करण अर तखि बस जाण। अर मि चेतन मन सुचणु रौं कि हमर बूड लोकों न हम तै भविष्य नि बताइ जबकि प्रतिदिन भविष्य ही तो बताणा छा सब।
आज सुपिन न सब गाँठ खोल दे जो चेतन मन नि खोल साक।
Copyright@ Bhishma Kukreti , 2017 जनवरी
जौं तैं मेल /टैगिंग अरुचिकर लग सि सूचित कर दियां।
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