ब्वे -बाब ब्यटा तैं अर ब्यटा बुबा तैं मरणो छोड़ गेन ! (इतिहास सम्मत , करुण रस वळ, समय दर्शांद कथा ) By Bhishma Kukreti

   
ब्वे -बाब ब्यटा तैं अर ब्यटा बुबा तैं मरणो छोड़ गेन !

(इतिहास सम्मत , करुण रस वळ, समय दर्शांद कथा )
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गढ़वळिम सर्वाधिक कथा लिखण वळ - भीष्म कुकरेती

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गढ़खाळ म पांच सात गाँव वळ पिपुळ डाळ तौळ कुछ कुछ सामूहिक नारायण बलि कर्मकांड म लिप्त छा। बड़ो हृदयविदारक दृश्य छौ।
एकि गाँव म बड़ी हृदयविदारक दृश्य छौ। बेटा नारायण बलि क वेदी म रुणु कि , " हे ब्वे ! हे बुबा ! मी त्वे मरदो छोड़ि चल गे छौ। त्वे नि बचै सौक। "
इनि एइ गांव म एक वृद्ध जोर जोर से रुणु कि मि अपर सतरा वर्षकुल नॉन तै मरदो छोड़ गे छौ अर अब नारायण बलि .....
यी दृश्य लगभग गंगा घाटी म सबि गाँवों म दिखणो मिलणा छा। हृदय विदारक दृश्य। सर्वत्र ! सब दुखी कि हम सब अपर अपर सगौं तै मरणो छोड़ि भाजी गे छा। पंडित जी बि रुणा इ छा ऊ बि अपर हज्या रोगी घरवळि छोड़ि बौण भाजी गे छा।
XX XXX
कुछ इन सि ह्वे छौ।
गुरख्यों आतंकी राज निबट्यां कुछ इ समय ह्वे होला। ब्रिटिश युग क शुरुवात म संभवतया यु पैलो या दुसर कुम्भ रै होलु। हरद्वार म हज्या शुरू ह्वे कि ऋषिकेश, फूलचट्टी , व्यासचट्टी , दिबप्रयाग , सिरनगर , रुद्रप्रयाग से पसरद पसरद मथि पिंडर घाटी क्या माणा अर गनोत्री यमनोत्री जिना तक पसर गे छौ।
गंगा से तीसेक मैल दूर धार पोरक गाँव छौ गढ़खाळ। इन मने जांद छौ कि कुम्भ क समय गंगा तट पर हज्या क आतंक पसर जांद छौ पर बीस तीस मैल दूर वळ बच जांद छा। हज्या , क सूचना मिल ना कि धार पोर वळ गंगा घाटी जिना सगा संबंधियों से मिलणो जाण बिलकुल बंद कर दींदा छा, जब तलक यु संतुष्टि नि ह्वे जा कि हज्या चल गे। तब हज्या या प्लेग से बचणो एकि सर्वव्यापी उपाय छौ , सम्पर्क समाप्ति। धन्वन्तरि म बि हज्या से बचणो उपाय नि छौ।
सूचना तो मिल गे छे कि हरद्वार म हज्या पसर गे। अर्थात अब हज्या तैं लक्ष्मण झूला से लेकि गंगोत्री , माणा तक पसरण तै भगवान बि नि रोक सकद छौ।
गंगाघाट चट्टी से तीस मैल दूर गढ़खाळ वळ चितळ ह्वे गे छा तौन अपर सब सगा संबंधियों तक रैबार भेज दे छौ बल इना हमर क्षेत्र जिना नि ऐन , बच्यां रौला तो हज्या समाप्ति उपरान्त मिल जौंला। दस से तीस लोगों जनसंख्या वळ प्रत्येक गाँव आत्म नर्भर देस बण गे छा जु अपर देस छोड़ि दुसर देस नि जै सकदा छा। लोग भुकि रौणम सदगति समजदा छा अर दुसर गां नि जांदा छह। पर न्याड़ -ध्वार क गाँवों म लसर -पसर ह्वे इ जांद। कखि ल्वार च तो तख जाण इ च। वैद्यों , पंडितों , तांत्रिकों क तो ये समय बड़ी मांड बढ़ गे छे तो थोड़ा थोड़ा आस पास आण -जाण ह्वे इ जाणों छौ। प्रत्येक गाँव म प्रत्येक मवासों न अपर प्रत्येक म्वार -द्वारक मथिण्ड /मुरिन्ड पर कांड अर कंडाळी से किलै इ दे छौ, जैं मौ म ढेला या लोखर छौ तैं मॉं न घ्वाड़ा नाळ चौबट म किलैक अपर मुरिन्ड म लगाई दे छौ । गाँव क चारों ओर कांड अर गौमूत , मोळ से किलये गे छौ। यु सबि गांवों म ह्वे।
हरिद्वार म हज्या हूणो सूचना मील तो दिबप्रयागि पंडा सतभैयों क भुरत्या ( गुमास्ता ) हरदयाल जो गढ़खाळ जिना को छौ स्यु डर गे किन्तु लोभ व जजमानों तै अणभरवस म नि छुड़नो भल मनसात क कारण हरिद्वार से नि भाज अर गुजरात क जातरी जजमानों दगड़ बद्रीनाथ मार्ग पर चलण लग गे। मनिख सदा रोग से मृत्यु क बारा म सकारात्मक हूंद कि वो तो बच जालो। तबि तो हम जाणि बूजिक क्चर पचर खै जांदा, धूम्रपान करण बंद नि करदा , बुड्या बासी उड़द क दाळ सपोड़ दींदन , बेडु तिमल खै जांदन , कच्चा आम भकोर दींदन , , दारु पे लीन्दन । हरदयाल तै द्वी अर्धकुम्भ अर एक कुम्भ क अनुभव छौ । महामारी ह्वे छे अर हरदयाल सबि दैं बच गे। वै तै भगवान अर अफ़ु पर भर्वस छौ कि महामारी वैक कुछ नि बिगाड़ सकदी। दिबप्रयागि पंडा सतभयों क जजमान यातर्यूं लेक हरदयाल फूलचट्टी आयी तो वैक शरीर कुछ कमजोर लगण लग गे अर द्वी तीन हौर जजमानों बि चित्त कुछ बिगडन सि लग गे छे। फूलचट्टी म भगवानों आशीर्वाद से मथि भुवनेश्वर क निकट का भट्ट वैद्य तख अयां छा। तौन कुछ जड़ी बूटी अर कुछ पिसिं औषधि दे अर जवाणो छुटी कुटरी हथ पर पकड़ाई कि जो भी हो जवाण बुकान्द जावो। वैद्य भट्ट जी बि भगणा क नीयत म छा तो सि भागि गेन।
हरदयाल अर जजमान लोक हरदयाल क छ्वाड़क श्रमिक शिल्पकार बलखु क मुंड म भार देक धीरे धीरे मादेव चट्टी रात पौंछिन। चट्टी क मालिक चनपुर क गोबिंद बिष्ट जी छा।
सुबेर कुछ जजमान , हरदयाल अर बलखु तै इन लगणु छौ कि तौं तै उलटी हूण वळ च। सि द्वी उकाण पर उकाणा छा। द्वी यात्री तो उलटी करण लग गेन सुबेर सुबेर।
गोबिंद बिष्ट लाला यात्रा अनुभवी छौ। गोबिंद बिष्ट न सब यात्रियों तै आगाह कार कि सब भाग जावो। गोबिंद न हरदयाल अर बलखु तै सलाह दे कि सब कुछ कार्य छोड़ी अपर गाँव चल जाओ , एक घड़ी बि नि रुको।
गोबिंद बिष्ट बि चट्टी चुट्टी क कुठड़ी बंद कोरी बकै उनी छोड़ि अपर गांवक ओर भागि सि गे। हरदयाल अर बलखु बि शीघ्रता से शीघ्रता से गोबिंद लाला क पैथर पैथर अपर गाँवों जिना दौड़न सि लग गेन। यात्रियों चिंता अब भगवान क भरवस ही छौ।
द्वी तीन यात्रियों तै उंद -उब हूण लग गेन , ना तो उलटी ना ही झाड़ा (शौच ) रुकणी छे। दुफरा तक तिनि यात्री मोर गेन। तौं तै तनि छोड़ि क शेष यात्री बद्रीनाथ जिना बढ़ गेन। मर्यां यात्रियों से सरा क्षेत्र म गरुड़ों आदि से हज्या पसरणो पूरा का पूरा अवसर बढ़ गे छा। क्षेत्र तै महामारी क जाल से बचण कठिन ही छौ। इनि सरा गढ़वाल का हाल छा।
हरदयाल अर बलखु क गाँव धार पोर छौ जना गढ़खाळ छौ। बलखु तै बिंडी डौर लगणी छे। डरणो छ्वीं बि छेई , महामारी जन हज्या , प्लेग , कुंजर बुखार , चेचक रोग को पैलो शिकार शिल्पकार विशेषकर श्रमिक ही हूंदन। सि रोगी मुर्दों , रोगी गोरुं तै लसोरिक जि लिजांदन या श्रम हेतु गाँव गाँव महामारी समय समय बि डबखण पड़द। अब जन महामारी हरिद्वार म पसर किन्तु बलखु तैं श्रम करणो चट्टियों चट्टियों इना उन घुमण इ पोड़। लगभग पांच दिन पैल बलखु तै एक रोगी यात्री तै उठैक लिजाण पोड़ छौ जो वास्तव म हज्या रोगी छौ। तै यात्री तै अबि पाणीदार पेचिस व उलटी शरू नि ह्वे छे। इनि हरदयाल बि उन यात्रियों मध्य राइ जो रोगी छा अर तौं पर रोग क चिन्ह अबि नि दिखे छा। द्वी वास्तव म रोग लेक चलणा रैन। अब सि द्वी वेग से मथि पहाड़ चढ़ना छा। बार बार दुयुं तै उकै लगणी , शरीर म जल कमी अनुभव हूणु छौ ,
. कनि कौरि सि द्वी धार म पहाड़ी क खाळ म पौंछ गे छा। दुयुं तै ऊंद -उब (झाड़ा -उलटी ) शुरू ह्वे गे छौ। द्वी उंद -उब करणा अर हिटणा बि छा , जगा जगा सि द्वी हज्या कीटाणु बि पसारना छा। बिचारों तै पता नि छौ। तौं तै उलटी अर पानी दस्त से तीस पर तीस लगणी छे। धार म खाळ तौळ एक छुट से जल सोत्र छौ जैक पाणि कुछ दूर नाळी रूपम छौ अगनै जैक या नाळी एक बड़ो छिंछ्वड़ से मिल्दो छौ। छिंछ्वड़क पाणी तौळ पाड़ से गिरिक द्वी भागों म बंट जांद छौ एक भाग गढ़खाळ जिना जांद छौ , हैंक बड़ खोळी जिना जांद छौ जखक बलखु छौ।
द्वी तीस बुझाणो हेतु नाळी म पाणि पीणो झरना मथि नाळी म गेन। पाणि पींद पींद दुयुंन नाळी म उल्टी अर दस्त बि कर दे , नि चायिक बि दुयुं न नाळी क पाणी रोगी क कीटाणु युक्त कर दे। यु दूषित जल रोगयुक्त जलन तौळ गाँवों म हज्या पसारि दे या अन्य माध्यमों से रोग पौंछ पर महामारी पौंछि गे तख।
द्वी गाँव नि पोँछीन अपितु दुयुंन बाट म इ दम तोड़ दे। इन म जब क्वी रोगी बाटम मोर जा चिलंग ,गरुड़ ल्हास तै चिंचोड़ दींदन व रोग कीटाणु तै इना ऊना पसार दींदन। क्वी बि यूं दुयुं क खोज म नि ऐन। चूँकि महामारी रुकणो क्वी
द्वी मोर तो मोर छन किन्तु गढ़खाळ अर बड़खोळी जन गाँवों म जल द्वारा रोग पंहुचै गेन। गढ़खाळ व बड़खोळी म पांच छै दिन म हज्या क शुरुवाती चिन्ह दिखेण लग गे छा। कुछ क शरीर पर ऐंठन शुरू ह्वे गे। दुसर दिन तौं पर उकै शुरू ह्वे अर तिसर दिन उलटी व पतलो दस्त शुरू ह्वे गेन। सूचना तो मिल ही गे छे तो लोक समज गेन कि गाँव म हज्या पसर गे।
लोक सब गाँव से भगणो उद्यत ह्वे गेन। क्वी नि दिखणु छौ कि घर म को च रोगी। भगदड़ वळि स्थिति ह्वे गे। बस लोगुंन दाथी , थमळी , कूटी उठायी , हांडी पर क्वीला उठाई अर भगण लग गेन।
वैक ब्वे बाब चौक म उलटी अर दस्त म लतपत छा पर वै तै अब सगा संबंधी क चिंता नि छे। ऊना तौंक अठारा वर्षौक नाउन रोगी छौ स्यु पुंगड़ म दस्त व उलटी करणु छौ पर ब्वे -बाब निष्ठुर ह्वेक भगणों उद्यत हुयां छा। युवा बेटा खोणो दुःख छौ किन्तु पैली अपर जीवन बचाणो कर्तव्य छौ। महामारी क्वी बि हो सब पशुवत व्यवहार करण लग जांदन पैल अपर जीवन शेष हौरू जीवन। युवा पत्नी बि अपर पति छोड़ी भाग गे। एक बुडड़ी चल फिर नि सकदी छे तो बुडड़ी तै भगवान भरोसा छोड़ दिए गे। क्षेत्र म प्रत्येक गाँवै यी दशा छे सब बौण भगणों क अतिरिक्त कुछ नि विचारणा छा। गोर बछर, बखर तक पर लिस्ट -बिस्ट ह्वे गे हवेली को डर से तौं फूची छोड़ दिए गे। अधिकाँश रोगी दस्त अर उलटी से तीस क शिकार ह्वेन तो तीस बुझाणो पाणी गदन जोग ह्वेन अर तौन तकही ज्यू दे दे।
हांडी , करुडी , बरोळी पर आग व कृषि उपकरण जन दाथी , कुलड़ी , कूटी , सब्बळ लेकि लोग भगणा छा दूर अपर ये रोग्रस्त गाँव से दूर। एकाद भांड , तमाखू तक ली गेन। सबसे उचित तो डांड छौ पर तख पाणी बड़ी हीनता क शंका छे तो लोग उखिम रुकिन जखम पाणी बिंडी न सै कुछ तो उपलब्ध हो। ये गढ़खाळ वळ दूर एक सारी म दौड़ी पौंछइन जखम एक पुंगड़ म पाणी बरमसया छोया छौ। बिंडी न सै पर रूड़ी म बि सुखद नि छौ। छाया निकट पौंचि कुछ अपर सगा संबंधियों क शत प्रतिशत संभावित मृत्यु याद कौरि रुण लग गेन। सब तो अपर अपर परियों तै मरणो छोड़ि इ अयाँ छा।
। रुण -धूणो उपरान्त सब तै अब अस्तित्व बचाणो याद बि आयी। सबसे पैल आग बचाणो हेतु फटाफट गुपळ कट्ठा करे गे। द्वी खड्डों पुटुक गुपळ जळैक धरे गे। खड्डा मथि पटाळ धरे गे कि बरखा हो तो आग नि बुझ। कुछ समय उपरांत दुसर गांवक पांच सात लोग बि ऐ गेन। जल सोत्र क कारण। उनसि हूंद तो द्वी गाँवों म युद्ध छिड़ जांद पर विपदा व निर्धनता सहकारिता जन्मदि तो तौं तै बि हैंक पुंगड़ म रौणौ स्वीकृति दिए गे। अनुभवी बूड़ लोगों क सलाह पर सबसे पैल कार्य ह्वे पुंगड़म चारों ओर से बाड़ अर एक छपर निर्माण। शिल्पकार क एक परिवार ही आयी सौक तो वो मुड़ी फांग म अपर प्रबंध म लग गे।
डाळ काटि , झाडी झूड़ी काटि द्वी गाँव वळो न बाड़ लगाई व इके पल्ल जन छपर व पिरामिड जन छपर बि निर्माण कार। बाड़ वन पशुओं से सुरक्षा व छपर घाम -बरखा से बचत हेतु आवश्यक छौ। बूड -बुड्या व बच्चों कुण छपर बाकी तो दिन म डाळ तौळ रै सकदा छा। अब भूख बि लगण इ छौ तो जौं पर सक्यात छे तौं तै बेडु -तिमल , हिसर जन वन फल लाणो बुले गे।
जै फांग म सब छा तै फांग क मथि दीवाल अर मुड़ी दीवाल पर बणांक लगाए गे कि चिमल्ठ , कीड़ पिटक , गुरा, मूस आदि भाग जावन। पगार म क्वी दुंळ दिखे तो धुंवा कौरे गे फिर बंद करे गे।
आज रात तो तिमल -बेडु -हिसर खैक रात कटे गे। पर बच्चों व बुड्यों तै बिंडी दीण अर्थात मिनी हज्या /कचे भट्याण। दूसर दिन द्वी चार दुर्भिक्ष भोजन क शोध म इना -उना लुण्या , चकुंडा , सिरळ , ग्वीराळ क फूल, गडबनी , घट बौर जन वनस्पति म लोग गेन। कुछ क पत्ता कछक जलड़ , बीज -फुळड़ , टांटी तना आदि काम लये गेन, जंगली पिंडालू क पत्ता बि लये गेन। कुछ तै चपड़ पत्थर म आग म पकाये गे कुछ तै पितक पर पाणी दगड़ पकाये गे। भूख सब चीज तै क्षमा कर दींदी। ये समय स्वाद क ना अपितु जीवन बचाणो हेतु महत्वपूर्ण छौ। अनुभव व बूड -खूडों से सुणी बातों बल पर वन भोजन को उपयोग शुरू ह्वे।
गाँव क ओर अगास म चिलंग , गरुड़ , कव्वों क भारी मात्रा म रिटण दिखे तो भौत सा पुनः रुण लग गेन। अर्थात मृत लोगों . म वृद्धि ह्वे। ध्यान रखे गे कि इना गांवक चिलंग , कव्वा , गरुड़ इना नि बैठन। फटाफट पुंगड़म जल सत्र पटाळ से ढके गे।
द्वी चार दिन उपरान्त इना उना से रैबार मिलेन कि भौत गाँवों म भूकन बि लोग मरणा छन या गलत -सलत वनस्पति खैक लोग मर गेन। सूचना नकारात्मक ही मिलणी छे।
पंदरा -बीस दिन ह्वे गे छे इख बि भुखमरी व कुपथ्य क समस्या शुरू ह्वे गे छे। गाँव म अब कव्वा , गरुड़ -चिलंगों क रिटण कम ह्वे गे छे अर्थात मर्यां लोगों क शरीर खये गे सब। किंतु यी समय ही बुर छौ रोग सौरणो।
उत्तर जीविता (सर्वाइवल ) क प्रश्न तो सब गाँवों म ह्वे गे। वन भोजन की अति कमी पड़न लग गे। भूक ये समूह म बि समस्या ह्वे गे। दूर दूर जाण से बि वन वनस्पति क समस्या दूर नि हूणी छे। सौल , हिरण जन पशु मरण से कुछ लाभ हूणु छौ।
एक माह उपरान्त रैबार मील कि बांघाट म अंग्रेजी सरकार न रासन भेज। पर बांघाट भौत दूर छौ। आसा छे कि सैत इना बि रासन आली।
बरखा बि शुरू ह्वे गे छे , छप्परों की संख्या बढ़ गे छे। कनि कौरि बरखा चार मैना बि कटे गेन। भूख , अपच , कचे आदि से इना बि तीन मनिख व एक बच्चा भगवान प्यारा ह्वे गेन ।
बरखा चौमास से गाँव म सफाई क आस पूर ह्वे गे छे। अब गाँव वापस जाणों समय बि ऐ गे छौ। गाँव म पैल घास फैलाये गे फिर चौक म घास जळाये गे। फिर इना उन से मोळ लाये गे अर मोळ छुळे व सिंवळ से पूरो गाँव मोळ से धुएं गे।
यांक पैथर ही लोग अपर घर म रहण लगेन।
कुछ समय उपरान्त सरा क्षेत्र वळों न सामूहिक नारायण बली क सुचे गे। पूरा क्षेत्र म एकि बामण परिवार बच कारण बामण वृति हेतु इना उना जि फिरणा छा बामण तो हज्या क प्रभावम ऐ गे छा। इनि सबसे अधिक मौत शिल्पकारों क ह्वे सि बि श्रम हेतु डबखणा छा । अब यू इकु बच्यां बामण जी इ सब्युं क नारायण बली कर्मकांड करणा छा।


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