पूत स्मरण
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मनोविज्ञानिक कथा - भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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जब मि रौमती बोडी क याद आवो ना कि म्यार गात पर इन झुरझुरी पोड़ जांद। मै लगद तमट्याण बोडी बड़ जाति बामण पर झम अंग्वाळ मारि देली। अंग्वाळs क छवि से इ मि दुःख म झलक बि जांद अर अपर हथ खुट मलासण लग जांद कि रौमती बॉडी क अंग्वाळs छाप साफ़ ह्वे जाओ। या सफै द्वी तरफान आवश्यक च सैत एक तमट्याण क भिड्युं गात साफ़ हूणी चयेंद अर फिर अब तो रौमती बोड़ी वैलोक च तो तमट्याणs क छाप से अधिक नखर ह्वे मृत क छाप।
आज बि याद च रौमती बोडी कुछ कुछ पथोड़ जन छुट गौळ अर लुट्या जन मुंड। रंग तो काळो किन्तु मि तै क्या लीण दीण कि तमट्याण बोडी रंग काळो च अर नाक बि अनुपात से छूट ही होलु। बोडी छे तो बिगरैली छे कि निबिगरैली क विचार कबि मन म ना तब आयी होलु ना अब जब मि रौमती बोडी तै कतै याद नि करण चांदो। वा बोडी तो भौत भली मनखिण छे किँतु झरझरी क कारण याद नि करण चांदो। रौमती बोडी मीम अर अपर नौनु चंदरू तै एकजनि इ मणदि छे।
उन मि बिलकुल नि चांदो कि तमट्याण बोडी अर्थात रौमती बोडी कबि बि याद आवो ना सुपिन म ना बिज्युं म। भौत दैं रात सियुं म रौमती बोडी क वो रूंद रूप याद आवो तो मि चड़म से निंद म खड़ ह्वे जांद। कार चलांद तो मि कतै नि चांद कि रौमती बोडी याद आवो। एक दिन तो अपघात होइ गे छौ जनि रौमती बोडी याद ऐ। भौत दैं रौमती बोडीयाद आवो तो अनियमित , विलक्षणी बिम्ब मन म तैर जांद छा जन पूतना कृष्ण तै दूध पिलांद , सर्पणी , मकड़ाी मि तै अपर जाळ म लिजाणी च अर मि तिति उंधारि भगणु हों या शिकारी जाळ म फंसाणु हो अर मि दांतुन जाळ कटणु हो तो कभि रौमति बोडी सौम्य देवी रूप म मि तै भट्याणि हो या एक पपीहा जल बून्द की खोज म हो .... बिलकुल अनायास अचंभित करण वळ बिम्ब।
दिखे जाव तो झुरझुरी कल्पना म तमटयाणी भिड़याण से नि हूण चयेंद किलैकि रौमती बोडी क जख तक याद च तो मि तीन म या चार म रै होलु त मि चंद्ररु अर्थात चंद्रप्रकाश क तिबारी म जादो छौ लगभग नियमित ही। चंदरु अर मि एकी कक्षा म पढ़दा छा त मित्रता बस या सहपाठी दुई संबंध से मि चंदरू क डेर चल जांद छौ। मि तो चंदरू क तिबारी क्या रुस्वड़ म बि चल जांद छौ किंतु चंदरू हमर छज्जा से एक अंगुळ बि अगनै भितर नि ांडो छौ। वो बचपन से इ अपर श्रेणी से अवगत छौ। मि यी द्वी अंतर् क बारा म अपर बड़ों से पुछद बि छौ सब झिड़क दींदा छः कि या हमर व्यवस्था च।
चंदरू हमर डिंडळ म नि ऐ सक्दो छौ तो मि गणित क प्रश्न या अन्य शैक्षणिक सहायता लीण -व दीणो वैक हि तिबारी म जांदो छौ। शिल्पकार ख्वाळ म ये ी मौ क बड़ी तिबारी च तिभित्या कूड़ च। एक खंड बच्चू दा जो चंदरू क चचेरा भाई छौ। हम दुयुं से द्वी वर्ष बड़ अर पढ़ण म हीन तो मि तै बच्चू दा से अधिक चंदरू क आवश्यकता हूंदी छे। मेरी कक्षा म बिठणs हैंक क्वी नि छौ तो चंदरूs डेर जाण आवश्यक ह्वे जांद छौ हम द्वी पढ़ाई तै गंभीर जि लींदा छह। कक्षा पांच म सरा पट्टी म फस्ट आण हमर उद्देश्य बण गे छौ। यु उद्देश्य संभवतया स्वयं जनित छौ। चंदरू ड्यार जाणो एक कारण यु बि छौ कि तख वैक बाबा जी अर्थात जतरू बडा क मिलिट्री फोटो दिखणो मिल्दो छा दगड़ म कुछ फोटो चंदरू ददा जीक आजाद हिन्द फौज अर गढ़वाल रैफल क फोटो बि दिखणो मिल्दो छौ। गां म इथगा फोटो कैक घर क्या मीलल। चंदरू बूबा जी मिल्ट्री म हवलदार छा। चंदरूs ददा जी अब नि छन।
उन म्यार घर वळ बि संशंकित रौंद छा कि रौमती बोडी मि तै कुछ खलै नि द्यावो या मी लालच म ऐक कुछ खै द्यूं या पाणी पी द्यूं। पर ना तो कबि रौमती बोडी न मै कुछ खलाणो दे ना इ मै कबि लालच ह्वे , परम्परा क बात हमर भितर कूट कूट कौरि जि भरीं छे। किंतु चंदरू हमर इख रोटी खै लींद छौ अर चा पे लींदो छौ।
म्यार अतिरिक्त नियमित रूप से बिट्ठ ख्वाळs क्वी ऑवर नौनु चंदरू या बच्चू दा या कै बि शिल्पकार विद्यार्थी घर नि आंदो छौ। आवश्यकता पड़ जाय तो इ जब कूटी दाथी पळयाणो आण अलग बात च।
खेल म हम सब सेक्युलर छा हाँ खिलद दैं शिल्पकारों तै जातीय नाम से गाळी दीण बुरु नि मने जांद छौ किंतु चंदरू सदा ही विरोध करदो छौ। चंदरू मामा जी शिल्पकारों नेता बि छा तो चंदरू म अपर अधिकार क चेतना छे। शरीर अपर हम उमर वळों तुलना म नाटो तो दगड्या स्कूल म दाणी नोलिक भट्यांदा छ। ऊर्जावान खिलंदेर।
कक्षा पांच तक त दगड़ी रावो हम किंतु मि पांच उपरान्त सहारनपुर चल ग्यों अर चंदरू गाँवs न्याड़ मविद्यालय म पढ़णो गे जख वैन दस पास कार अर मीन बि। छुट्टियों म मिल्दा छा पर अब संबंधों म वा गरमी , ऊर्जा , अपनोपन नि रै गे। मि अब बिट्ठ अधिक छौ बनिस्पत बचपन से। समाज न बि वै तै अधिक तम्वट बणै दे या वैक मन म भर दे कि तू तम्वट छे बस। या समय क संग संबंधों म जो ठंडापन आंद स्यु ठंडापन ऐ गे। किन्तु हम फिर बि एक हैंक तै पसंद करदा ही छा।
इंटर क परीक्षा उपरान्त मि आई ए एस परिक्षा तैयारी म सहारनपुर ही रै ग्यों घर नि ग्यों। चंदरू बि दस पास करणो उपरान्त इंटर करणो लखनऊ चल गे छौ। बरखा शुरू हूण से पैल समाचार मील कि चंद्र प्रकाश याने चंदरूछूती म घर आयुं छौ अर गाँव म तड़तड़ो घाम म फौड़ पकाणु छौ कि वैक छति फट , मुख से खून कि उल्टी ह्वेन अर वैद्यराज क आण से पैल इ चंदरू वैलोक चल गे।
मीन जब समाचार सूण तो अति आघात लग एक -द्वी दिन न ठीक से सिया न खाया लगणु राय म्यार एक अंग कटे गे हो। भौत बार चंदरू क दगड़ बितायां पल याद ाँद गेन। फिर घाव भरदा गेन अर मि लगभग चंदरू तैं बिसरि इ गे छौ।
ग्रेजुएशन क पैल वर्ष म गरम्यूं छुटि म मि डेर ग्यों , रात घर पौंछ , तो मांन चेते दे छौ कि रौमती बोडी न त्यार पैंथर पोड़न। वा बोडी मां से प्रतिदिन पुछणि रौंद छे मि कब घर आणु छौ ,
दुसर दिन मि घाम आण म नयेणो कि झाड़ा फिराक हेतु मथि धरड़ा बाट से जाणु छौ कि रौमती बोडी मुंड म गागर धौरि पाणि लेक आणि छे कि मि तै द्याख अर बोडी न गागर धड़म से भीम धार क्या चुटाइ अर जोर से म्यार तरफ आयी अर मे पर जोर का अंग्वाळ मारी जोर जोर से रूण लग गे अर अफु बरड़ाण लग गे -
ये ब्वे म्यार चंदरू न बि तेरा क इम्त्यान डेक घर आण छौ। मेकुण वैन बनि बनि मिठै लाण छे। तू बि लै ?
वै अभागी न मेकुण चप्पल लाण छौ हर छुटि म लांद छौ। तू बि लै ?
पता नि क्या क्या बुलणी छे धौं वा बॉडी।
गाँव वळ जमा ह्वे गेन। अजीव स्तिथि हुंई छे एक तमट्वण एक बामण युवा पर अंग्वाळ बटण अनहोनी ही मने गे। किंतु इखम बुर मनण वळ बात इलै नि छे कि एक वर्ष से रौमती बोडी युवा पुत्र शोक म कुछ कुछ मतिहीन सि ह्वे गे छे। अचाणचक कुछ बि विलखणी व्यवहार कर लींदी छे। मेरि मां तै पता चल गे तो मां आयी अर रौमती बोडी तै छुड़ाइ क घर ली गे। कैन बि नि सोच कि एक बमणी एक तमट्वण पर भिड़े गे। मानवीय कारण छौ तो शिल्पकार -बिठ की बात किलै हूण छौ।
मैकुण यु अनुभव डरावनो छौ। मि हिल ग्यों कि ह्वै क्या च। विलखणी सि , भयकारी अनुभव। एक मृत पूत को प्रेम म मतिहारी मांक रोदन छौ किंतु मेकुण अर दुन्या कुण मतिहारी , विक्षिप्तन छौ। मि तै देखि रौमती बोडी तैं अपर पुत्र याद आण सामान्य बात छे अर अन्य ब्वे इन स्तिथि म अपर भावना रोक दींदी ह्वेलि पर रौमती बोडी अपर भावना रुकण म असहाय छे। मीन सोच च , मेरि मां क बि यी विचार छा। मेरी ददि क्या मथि कूड़ै जणगरि ददि क बि सहानुभूति रौमती बोडी क दगड़ छे।
अब इनि रौमती बोडी क बाट म मै पर झपटण लगभग प्रतिदिन की बात ह्वे गे। समझिक बि मे कुण यी घटना त्रास इ छौ। मि तै दिखणो रौमती बोडी बिट्ठण इ घुमणि रौंदी छे। मि नि दिख्यों तो खुजणो इना उना चक चक भटकदि छे।
गरम्यूं म हमर गाँव म प्रधान जीक डंड्यळ म सामूहिक चौपड़ अर तास खिलणो संस्कृति छे। दुफरा भोजन कौरि मी बि चौपड़ खिलणो तख जांदो छौ अर कक्षा आठ बिटेन छुटि म मि इख नियमित खिलाड़ी ना सै तो दर्शक रौंदी छौ।
पर ये वर्ष खिलाड़ियों क मध्य अशांति , इ ऐ जांद छौ कुछ समय उपरान्त रौमती बोडी प्रधान जीक चौक म ऐक रउवा रोइ करण लग जांद छौ।
" म्यार चंदरू तै बि चौपड़ खिलण भौत पसंद छौ। "
"तास खिलण म बि म्यार चंदरू कन कन पत्तिबाजों तै हरै दींद छौ। "
" सरा शिल्पकारों कुण लखनऊ बिटेन नया न्य चौपड़ लायी छौ पर बुर ह्वे वै भगवान कुण कि चौपड़ क नवाण बि नि कार साक "
इनम मेकुण डंड्यळ रौण अर्थात खिलाड़िओं कुण बेकार म बखेड़ा . तो मि भागिक अपर डेर आइ जांद छौ अर रौमती बोडी तै ठेल ठालिक क्वी ना क्वी तैंक घर छोड़ि ऐ जांद छौ।
मि चार दिनों कुण ममा कोट चल ग्यों। तो जब बौड़ी औं तो मां न ब्वाल कि रौमती बोडी रोज हमर घर आंदि छे अर बुल्दी छे कि 'मि' अर चंदरू आपस म बड़ दगड्या छौ तो मैं तै देखि वीं तैं भग्यान चंदरू याद ऐ जांद।
एक दिन तो हद्द ही ह्वे गे कि मे पर रौमती बोडी झपटण वाळ छे कि मि तौळ भगण लग ग्यों। रौमती बोडी म्यार पैंथर इन दौड़ जन बाघ घ्वीड़ क पैथर दौड़दि। गांवक लोग बीच म ऐन अर रौमती बोडी तै घर ली गेन।
घर वळुंन निर्णय ले कि बकै छुटि मि ममाकोट चल जौं। मि दुसर दिन घाम आण से पैल इ मि ममाकोट चल ग्यों अर उखी बिटेन सहारनपुर चलि ग्यों।
दिवाळी छुटि म म्यार विचार ड्यार जाणो छौ कि दस दिन पैल गाँव से मां क पत्र आयी कि रौमती बोडी रोज हि घरम आंदि कि म्यार चंद्रु दोस्त कब घर आणु च। घर वळों सलाह छे कि मि ममाकोट चल जौं या घर हि नि औं. मि छुटिम घर हि नि ग्यों।
गरम्युं छुटि म जाण से पैल समाचार आई कि रौमती बोडि डाळ बिटेन लमडी क खटला जोग हुईं च तो सलाह छे कि मि बेझिझक घर ऐ जौं।
घर पौंछण म तीन दिन शान्ति राई। चौथ दिन ददि न राय दे कि मि तै रौमती बोडी दिखणो जाण चयेंद। ददि क सलाह पर मि तौळ ख्वाळ रौमती बोडी दिखणो ग्यों।
बोडी खटला म रूण लग गे। डाळ बिटेन लमडण से कमर म अबि बि सार नि छौ। घरक का का म चंदरू क भूली सबाळणि छे। आज इन लगणु छौ बोडी क भावना नियंत्रण च। या अपघात को दुःख अब बड़ छौ। बोडी न चंदरू तै याद कार कि वैक बान क्या नि सै बाड़ी गरम पाणी म खायी कि वै तै जूंक नि लग। भौत सि घटनाओं क वर्णनं कार बोडीन।
मि दुसर आणों बोलि ऐ ग्यों। द्वी तीन दिन मि रौमती बॉडी म ग्यों छौ।
भौत वर्षों तक मि आजीविका क चक्कर म घर नि ग्यों। लगभग बंद ही च घर जाण।
अब रौमती बोडी नी च। किन्तु जब बि रौमती बोडी याद आंदि मि बिचलित ह्वे जांदो।
Copyright@ Bhishma Kukreti , 2015 जून
जौं तैं मेल /टैगिंग अरुचिकर लग सि सूचित कर दियां।
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मनोविज्ञानिक कथा - भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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जब मि रौमती बोडी क याद आवो ना कि म्यार गात पर इन झुरझुरी पोड़ जांद। मै लगद तमट्याण बोडी बड़ जाति बामण पर झम अंग्वाळ मारि देली। अंग्वाळs क छवि से इ मि दुःख म झलक बि जांद अर अपर हथ खुट मलासण लग जांद कि रौमती बॉडी क अंग्वाळs छाप साफ़ ह्वे जाओ। या सफै द्वी तरफान आवश्यक च सैत एक तमट्याण क भिड्युं गात साफ़ हूणी चयेंद अर फिर अब तो रौमती बोड़ी वैलोक च तो तमट्याणs क छाप से अधिक नखर ह्वे मृत क छाप।
आज बि याद च रौमती बोडी कुछ कुछ पथोड़ जन छुट गौळ अर लुट्या जन मुंड। रंग तो काळो किन्तु मि तै क्या लीण दीण कि तमट्याण बोडी रंग काळो च अर नाक बि अनुपात से छूट ही होलु। बोडी छे तो बिगरैली छे कि निबिगरैली क विचार कबि मन म ना तब आयी होलु ना अब जब मि रौमती बोडी तै कतै याद नि करण चांदो। वा बोडी तो भौत भली मनखिण छे किँतु झरझरी क कारण याद नि करण चांदो। रौमती बोडी मीम अर अपर नौनु चंदरू तै एकजनि इ मणदि छे।
उन मि बिलकुल नि चांदो कि तमट्याण बोडी अर्थात रौमती बोडी कबि बि याद आवो ना सुपिन म ना बिज्युं म। भौत दैं रात सियुं म रौमती बोडी क वो रूंद रूप याद आवो तो मि चड़म से निंद म खड़ ह्वे जांद। कार चलांद तो मि कतै नि चांद कि रौमती बोडी याद आवो। एक दिन तो अपघात होइ गे छौ जनि रौमती बोडी याद ऐ। भौत दैं रौमती बोडीयाद आवो तो अनियमित , विलक्षणी बिम्ब मन म तैर जांद छा जन पूतना कृष्ण तै दूध पिलांद , सर्पणी , मकड़ाी मि तै अपर जाळ म लिजाणी च अर मि तिति उंधारि भगणु हों या शिकारी जाळ म फंसाणु हो अर मि दांतुन जाळ कटणु हो तो कभि रौमति बोडी सौम्य देवी रूप म मि तै भट्याणि हो या एक पपीहा जल बून्द की खोज म हो .... बिलकुल अनायास अचंभित करण वळ बिम्ब।
दिखे जाव तो झुरझुरी कल्पना म तमटयाणी भिड़याण से नि हूण चयेंद किलैकि रौमती बोडी क जख तक याद च तो मि तीन म या चार म रै होलु त मि चंद्ररु अर्थात चंद्रप्रकाश क तिबारी म जादो छौ लगभग नियमित ही। चंदरु अर मि एकी कक्षा म पढ़दा छा त मित्रता बस या सहपाठी दुई संबंध से मि चंदरू क डेर चल जांद छौ। मि तो चंदरू क तिबारी क्या रुस्वड़ म बि चल जांद छौ किंतु चंदरू हमर छज्जा से एक अंगुळ बि अगनै भितर नि ांडो छौ। वो बचपन से इ अपर श्रेणी से अवगत छौ। मि यी द्वी अंतर् क बारा म अपर बड़ों से पुछद बि छौ सब झिड़क दींदा छः कि या हमर व्यवस्था च।
चंदरू हमर डिंडळ म नि ऐ सक्दो छौ तो मि गणित क प्रश्न या अन्य शैक्षणिक सहायता लीण -व दीणो वैक हि तिबारी म जांदो छौ। शिल्पकार ख्वाळ म ये ी मौ क बड़ी तिबारी च तिभित्या कूड़ च। एक खंड बच्चू दा जो चंदरू क चचेरा भाई छौ। हम दुयुं से द्वी वर्ष बड़ अर पढ़ण म हीन तो मि तै बच्चू दा से अधिक चंदरू क आवश्यकता हूंदी छे। मेरी कक्षा म बिठणs हैंक क्वी नि छौ तो चंदरूs डेर जाण आवश्यक ह्वे जांद छौ हम द्वी पढ़ाई तै गंभीर जि लींदा छह। कक्षा पांच म सरा पट्टी म फस्ट आण हमर उद्देश्य बण गे छौ। यु उद्देश्य संभवतया स्वयं जनित छौ। चंदरू ड्यार जाणो एक कारण यु बि छौ कि तख वैक बाबा जी अर्थात जतरू बडा क मिलिट्री फोटो दिखणो मिल्दो छा दगड़ म कुछ फोटो चंदरू ददा जीक आजाद हिन्द फौज अर गढ़वाल रैफल क फोटो बि दिखणो मिल्दो छौ। गां म इथगा फोटो कैक घर क्या मीलल। चंदरू बूबा जी मिल्ट्री म हवलदार छा। चंदरूs ददा जी अब नि छन।
उन म्यार घर वळ बि संशंकित रौंद छा कि रौमती बोडी मि तै कुछ खलै नि द्यावो या मी लालच म ऐक कुछ खै द्यूं या पाणी पी द्यूं। पर ना तो कबि रौमती बोडी न मै कुछ खलाणो दे ना इ मै कबि लालच ह्वे , परम्परा क बात हमर भितर कूट कूट कौरि जि भरीं छे। किंतु चंदरू हमर इख रोटी खै लींद छौ अर चा पे लींदो छौ।
म्यार अतिरिक्त नियमित रूप से बिट्ठ ख्वाळs क्वी ऑवर नौनु चंदरू या बच्चू दा या कै बि शिल्पकार विद्यार्थी घर नि आंदो छौ। आवश्यकता पड़ जाय तो इ जब कूटी दाथी पळयाणो आण अलग बात च।
खेल म हम सब सेक्युलर छा हाँ खिलद दैं शिल्पकारों तै जातीय नाम से गाळी दीण बुरु नि मने जांद छौ किंतु चंदरू सदा ही विरोध करदो छौ। चंदरू मामा जी शिल्पकारों नेता बि छा तो चंदरू म अपर अधिकार क चेतना छे। शरीर अपर हम उमर वळों तुलना म नाटो तो दगड्या स्कूल म दाणी नोलिक भट्यांदा छ। ऊर्जावान खिलंदेर।
कक्षा पांच तक त दगड़ी रावो हम किंतु मि पांच उपरान्त सहारनपुर चल ग्यों अर चंदरू गाँवs न्याड़ मविद्यालय म पढ़णो गे जख वैन दस पास कार अर मीन बि। छुट्टियों म मिल्दा छा पर अब संबंधों म वा गरमी , ऊर्जा , अपनोपन नि रै गे। मि अब बिट्ठ अधिक छौ बनिस्पत बचपन से। समाज न बि वै तै अधिक तम्वट बणै दे या वैक मन म भर दे कि तू तम्वट छे बस। या समय क संग संबंधों म जो ठंडापन आंद स्यु ठंडापन ऐ गे। किन्तु हम फिर बि एक हैंक तै पसंद करदा ही छा।
इंटर क परीक्षा उपरान्त मि आई ए एस परिक्षा तैयारी म सहारनपुर ही रै ग्यों घर नि ग्यों। चंदरू बि दस पास करणो उपरान्त इंटर करणो लखनऊ चल गे छौ। बरखा शुरू हूण से पैल समाचार मील कि चंद्र प्रकाश याने चंदरूछूती म घर आयुं छौ अर गाँव म तड़तड़ो घाम म फौड़ पकाणु छौ कि वैक छति फट , मुख से खून कि उल्टी ह्वेन अर वैद्यराज क आण से पैल इ चंदरू वैलोक चल गे।
मीन जब समाचार सूण तो अति आघात लग एक -द्वी दिन न ठीक से सिया न खाया लगणु राय म्यार एक अंग कटे गे हो। भौत बार चंदरू क दगड़ बितायां पल याद ाँद गेन। फिर घाव भरदा गेन अर मि लगभग चंदरू तैं बिसरि इ गे छौ।
ग्रेजुएशन क पैल वर्ष म गरम्यूं छुटि म मि डेर ग्यों , रात घर पौंछ , तो मांन चेते दे छौ कि रौमती बोडी न त्यार पैंथर पोड़न। वा बोडी मां से प्रतिदिन पुछणि रौंद छे मि कब घर आणु छौ ,
दुसर दिन मि घाम आण म नयेणो कि झाड़ा फिराक हेतु मथि धरड़ा बाट से जाणु छौ कि रौमती बोडी मुंड म गागर धौरि पाणि लेक आणि छे कि मि तै द्याख अर बोडी न गागर धड़म से भीम धार क्या चुटाइ अर जोर से म्यार तरफ आयी अर मे पर जोर का अंग्वाळ मारी जोर जोर से रूण लग गे अर अफु बरड़ाण लग गे -
ये ब्वे म्यार चंदरू न बि तेरा क इम्त्यान डेक घर आण छौ। मेकुण वैन बनि बनि मिठै लाण छे। तू बि लै ?
वै अभागी न मेकुण चप्पल लाण छौ हर छुटि म लांद छौ। तू बि लै ?
पता नि क्या क्या बुलणी छे धौं वा बॉडी।
गाँव वळ जमा ह्वे गेन। अजीव स्तिथि हुंई छे एक तमट्वण एक बामण युवा पर अंग्वाळ बटण अनहोनी ही मने गे। किंतु इखम बुर मनण वळ बात इलै नि छे कि एक वर्ष से रौमती बोडी युवा पुत्र शोक म कुछ कुछ मतिहीन सि ह्वे गे छे। अचाणचक कुछ बि विलखणी व्यवहार कर लींदी छे। मेरि मां तै पता चल गे तो मां आयी अर रौमती बोडी तै छुड़ाइ क घर ली गे। कैन बि नि सोच कि एक बमणी एक तमट्वण पर भिड़े गे। मानवीय कारण छौ तो शिल्पकार -बिठ की बात किलै हूण छौ।
मैकुण यु अनुभव डरावनो छौ। मि हिल ग्यों कि ह्वै क्या च। विलखणी सि , भयकारी अनुभव। एक मृत पूत को प्रेम म मतिहारी मांक रोदन छौ किंतु मेकुण अर दुन्या कुण मतिहारी , विक्षिप्तन छौ। मि तै देखि रौमती बोडी तैं अपर पुत्र याद आण सामान्य बात छे अर अन्य ब्वे इन स्तिथि म अपर भावना रोक दींदी ह्वेलि पर रौमती बोडी अपर भावना रुकण म असहाय छे। मीन सोच च , मेरि मां क बि यी विचार छा। मेरी ददि क्या मथि कूड़ै जणगरि ददि क बि सहानुभूति रौमती बोडी क दगड़ छे।
अब इनि रौमती बोडी क बाट म मै पर झपटण लगभग प्रतिदिन की बात ह्वे गे। समझिक बि मे कुण यी घटना त्रास इ छौ। मि तै दिखणो रौमती बोडी बिट्ठण इ घुमणि रौंदी छे। मि नि दिख्यों तो खुजणो इना उना चक चक भटकदि छे।
गरम्यूं म हमर गाँव म प्रधान जीक डंड्यळ म सामूहिक चौपड़ अर तास खिलणो संस्कृति छे। दुफरा भोजन कौरि मी बि चौपड़ खिलणो तख जांदो छौ अर कक्षा आठ बिटेन छुटि म मि इख नियमित खिलाड़ी ना सै तो दर्शक रौंदी छौ।
पर ये वर्ष खिलाड़ियों क मध्य अशांति , इ ऐ जांद छौ कुछ समय उपरान्त रौमती बोडी प्रधान जीक चौक म ऐक रउवा रोइ करण लग जांद छौ।
" म्यार चंदरू तै बि चौपड़ खिलण भौत पसंद छौ। "
"तास खिलण म बि म्यार चंदरू कन कन पत्तिबाजों तै हरै दींद छौ। "
" सरा शिल्पकारों कुण लखनऊ बिटेन नया न्य चौपड़ लायी छौ पर बुर ह्वे वै भगवान कुण कि चौपड़ क नवाण बि नि कार साक "
इनम मेकुण डंड्यळ रौण अर्थात खिलाड़िओं कुण बेकार म बखेड़ा . तो मि भागिक अपर डेर आइ जांद छौ अर रौमती बोडी तै ठेल ठालिक क्वी ना क्वी तैंक घर छोड़ि ऐ जांद छौ।
मि चार दिनों कुण ममा कोट चल ग्यों। तो जब बौड़ी औं तो मां न ब्वाल कि रौमती बोडी रोज हमर घर आंदि छे अर बुल्दी छे कि 'मि' अर चंदरू आपस म बड़ दगड्या छौ तो मैं तै देखि वीं तैं भग्यान चंदरू याद ऐ जांद।
एक दिन तो हद्द ही ह्वे गे कि मे पर रौमती बोडी झपटण वाळ छे कि मि तौळ भगण लग ग्यों। रौमती बोडी म्यार पैंथर इन दौड़ जन बाघ घ्वीड़ क पैथर दौड़दि। गांवक लोग बीच म ऐन अर रौमती बोडी तै घर ली गेन।
घर वळुंन निर्णय ले कि बकै छुटि मि ममाकोट चल जौं। मि दुसर दिन घाम आण से पैल इ मि ममाकोट चल ग्यों अर उखी बिटेन सहारनपुर चलि ग्यों।
दिवाळी छुटि म म्यार विचार ड्यार जाणो छौ कि दस दिन पैल गाँव से मां क पत्र आयी कि रौमती बोडी रोज हि घरम आंदि कि म्यार चंद्रु दोस्त कब घर आणु च। घर वळों सलाह छे कि मि ममाकोट चल जौं या घर हि नि औं. मि छुटिम घर हि नि ग्यों।
गरम्युं छुटि म जाण से पैल समाचार आई कि रौमती बोडि डाळ बिटेन लमडी क खटला जोग हुईं च तो सलाह छे कि मि बेझिझक घर ऐ जौं।
घर पौंछण म तीन दिन शान्ति राई। चौथ दिन ददि न राय दे कि मि तै रौमती बोडी दिखणो जाण चयेंद। ददि क सलाह पर मि तौळ ख्वाळ रौमती बोडी दिखणो ग्यों।
बोडी खटला म रूण लग गे। डाळ बिटेन लमडण से कमर म अबि बि सार नि छौ। घरक का का म चंदरू क भूली सबाळणि छे। आज इन लगणु छौ बोडी क भावना नियंत्रण च। या अपघात को दुःख अब बड़ छौ। बोडी न चंदरू तै याद कार कि वैक बान क्या नि सै बाड़ी गरम पाणी म खायी कि वै तै जूंक नि लग। भौत सि घटनाओं क वर्णनं कार बोडीन।
मि दुसर आणों बोलि ऐ ग्यों। द्वी तीन दिन मि रौमती बॉडी म ग्यों छौ।
भौत वर्षों तक मि आजीविका क चक्कर म घर नि ग्यों। लगभग बंद ही च घर जाण।
अब रौमती बोडी नी च। किन्तु जब बि रौमती बोडी याद आंदि मि बिचलित ह्वे जांदो।
Copyright@ Bhishma Kukreti , 2015 जून
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लिखवार कथा क सत्यता पर क्वी उत्तरदायित्व नि लींदो
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती
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